एक "मूर्ख", "अज्ञानी" की बातें.......

आज कल के डिजिटल मीडिया के जमाने में यहां लोगों को हर समस्या का हल गूगल बाबा से मिल जाता है और फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप पर सभी के द्वारा सभी की चुगलियां घर बैठे ही आसानी से हो जाती हैं वहीं लोगों में बहुत सारी भ्रांतियां भी फ़ैल रही हैं। खासकर इन त्योहारों के दिनों में ही बहुत सी बातें हमारी संस्कृति से जुड़ी रस्मों रिवाजों को लेकर कही जाती हैं जिनके बारे में जानकारी काफी सीमित है। पहले कहा जाता था कि हर भारतीय अपने आप में छोटा-मोटा डाक्टर है क्योंकि हर किसी को हर बीमारी को ठीक करने के घरेलू उपाय और दवाईयां तक पता होती हैं। लोग किसी के पास उसका हाल चाल पूछने कम और अपनी डाक्टरी सलाह देने ज्यादा जाते हैं। इसी तरह अब हर भारतीय पंडिताई और धार्मिक अनुष्ठानों में विशेषज्ञ हो गया है। दवाईयां की तरह सभी को सब पता है कि किस त्योहार में या किस दिन कौन से देवता की कैसे पूजा की जाती है और वह लोग यह ज्ञान केवल खुद तक ही सीमित नहीं रखते बल्कि मुफ्त में हर जाने अंजाने को भी बांटते हैं। हमारा डाक्टरी में पारंगत होने का सबसे ज्यादा फायदा मेडिकल उद्योग ने उठाया जिस कारण आज बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग सब को नियमित रूप में कोई ना कोई दवाई खानी जरूरी है और हम विशेषज्ञ होकर भी कभी अपने डॉक्टर से यह सवाल नहीं पूछते कि "इस दवाई से फ़ायदे के इलावा नुकसान भी बताईए" वहीं कोरोना के बाद हर शख्स डाइट और न्यूट्रीशन का विशेषज्ञ बन गया जिसके चलते जगह जगह डाइटिशियन क्लीनिक खुलने लगे हैं। मगर कोई डाक्टर या डाइटिशियन ये नहीं बताएगा कि कोरोना काल में बेहिसाब काढ़ा पीने के नुकसान क्या क्या रहे।
और अब आ गए त्योहार काल।।।।। शुरुआत करें गणपति उत्सव से। महाराष्ट्र का यह त्यौहार दुनिया के हर कोने में मनाया जाता है। सिर्फ ये ही नहीं किसी भी देश का कोई भी त्योहार छोटे या बड़े स्तर पर दुनिया के हर कोने में मनाया जाने लगा है। पहले बात करें गणेश जी की मुर्ति की। मुर्ति के हाथ में लड्डू हो कि खाली हो (मुफ्त की सलाहें - 1. हाथ इसलिए खाली होना चाहिए कि उसमें रोज़ आप प्रसाद का एक लड्डू रखें। 2. खाली हाथ इसलिए होता है कि उसमें पान का बीड़ा बना कर रख दिया जाए। 3. भरा हाथ इसलिए जरूरी है कि भगवान घर को धन धान्य से परिपूर्ण कर दें। वगैरह-वगैरह।) हाथ के बाद बारी आती है सूंड़ की दिशा दाईं ओर हो या बाईं ओर। इस के लिए अलग से जानकारी है जिसे पाने के लिए आपको कोई संघर्ष करने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये आपको आते जाते खूब मिलेंगी इतनी कि मूर्ति बेचने वाला पांच साल का बच्चा भी इस जानकारी में पारंगत है। अब अगर मूर्ति की खरीदारी हो गई तो उसके बाद घर लेकर जाने से लेकर मंदिर सजाने, मुर्ति स्थापित करने से लेकर प्रसाद बनाने तक हजारों जानकारियां....... अब इन सबसे निपटने के बाद, सारे सोशल मीडिया मंचों पर गणेश जी की फ़ोटोज, विडियोज़ अपलोड होने के  3-4 दिन बाद एक मैसेज सरकूलएट होने लगता है कि "उत्तर भारत में गणेश विसर्जन नहीं करना चाहिए क्योंकि गणेश जी उत्तर से दक्षिण अपनी माता जी के साथ अपने बड़े भ्राता से मिलने दक्षिण गए थे और दस दिन वहां रहे थे। उनको उत्तर में अपने घर वापस भेजने के लिए दक्षिण में विसर्जित किया जाता है और अगर आप ने उत्तर में इन्हें विसर्जित कर देंगे तो फिर दीवाली का त्योहार कैसे मनाओगे? आपने तो अपने हाथों से गणेश जी को विदा कर दिया तो फिर लक्ष्मी पूजन कैसे होगा!" Blah...... blah...... blah......
भले मानुषों और ज्यों कहें कि विज्ञानियों, ये बात या ये मैसेज आपको गणेश उत्सव के 3/4 दिन बाद ही क्यों याद आता है, उत्सव से पहले क्यों नहीं? जिस उपनिषद, वेद या ग्रंथ में यह बात लिखी है अगर उसका भी जिक्र कर दें तो भारतियों की सौ नस्लों का बेड़ा पार हो जाएगा क्योंकि आपके एक मैसेज से उन पर प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने की समझ तो आएगी। खैर इन विशेषज्ञों का काम एक ऊंगली से मैसेज फारवर्ड करने का होता है, किसी को समझाने का नहीं। समझना तो हर इंसान को खुद पड़ता है, अपनी धैर्य शक्ति से और अपनी दृढ़ निश्चय से। छोटा मुंह और बड़ी बात या ज्यों कहा जाए कि आजकल के ज्ञानियों के बीच में एक अज्ञानी की बात ------- मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या चर्च, इन सबको ध्यान और प्रगाढ़ का उद्गम स्थल माना जाता है। यह सब जब बनाए गए थे तो इसका एक ही कारण था कि इंसान दिन भर की भाग-दौड़ से पहले या बाद में अपने विचारों को यहां आकर एकत्रित कर सके जिससे कि वो अचानक आने वाली दिन भर की विपत्तियों का सामना करने के लिए सक्षम हो सके। वहीं पूजा करने का मतलब है कि पूरे दिन में व्यक्ति तरह तरह के व्यक्तित्वों से मिलते-जुलते हैं और उनकी अनुभूतियों को समेटते हैं (आधुनिक विज्ञान ने भी इसे मान्यता प्रदान की है कि हमारा व्यक्तित्व इस ब्रह्माण्ड का सूक्ष्म अणुओं में से एक है जिस पर उसके आसपास वितरित अणुओं का पूरा प्रभाव पड़ता है।) अपने व्यक्तित्व को शुद्ध करने के लिए सायंकाल में धार्मिक स्थलों पर जाकर या घर के शांत कोने में बैठ कर पूजा करने की मान्यता है। फिर ये दिखावा, शोर शराबा क्यों और किस आधार पर?
आगे बढ़ें और बात करें त्योहारों के दिनों की,,,,, आजकल तो पंडितो को यही स्पष्ट नहीं हो पाता कि त्योहार आज मनाना है या कल???? इसी कारण से हर त्योहार, व्रत आदि के दो - दो दिन बनने लगे। भाई जिसको जो दिन ठीक लगे उसी दिन त्योहार मना लो। इन सब के चलते हमारी भावी पीढ़ी के मन में श्रद्धा कम होती जा रही है इसे सोचने की फुर्सत किस को भला!!!!!! ऊपर से पढ़े लिखे लोग इन्हीं पंडितों के पास जाकर ग्रह शांति से लेकर ग्रहों को बदलने तक के उपाय पूछते हैं। जितने पढ़े लिखे लोग उतने ही ज्यादा जादू टोने पर विश्वास।।।।। अरे भाई जो पंडित व्रत त्योहार का सही दिन और समय नहीं बता पा रहे वो तुम्हारी किस्मत क्या बदलेंगे?????? चलो खुद तो कर रहे हैं मगर अपने बच्चों से जबरदस्ती यही सब करवा रहे हैं। अब सोचो एक बच्चा जो कि डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर चुका है और आगे और पढ़ने की चाह में दिन रात सफ़ल होने के लिए पूरी तत्परता से लगा हुआ है, वो ही बच्चा नीम के पेड़ में कीलें ठोंक रहा क्योंकि मां या नानी/ दादी ने किसी से उसकी सफलता के बारे में पूछा और उस महाज्ञानी ने शत प्रतिशत की गारंटी लेते हुए यही उपाय बता दिया। अब आप ही सोचो कि वो डॉक्टर बन कर मरीजों का कैसा इलाज करेगा? उस पर नया फैशन ये है कि अपने ही परिवार के सदस्यों को खुश व सफ़ल नहीं देखा जा रहा तो आज़माओ उन पर टोटके!!!!! "भाई हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी साथ लेकर डूबेंगे "! और चांदी हो गई पंडितों की!!!!!! हमारी एकजुट होकर रहने की संस्कृति को कहो "स्वाहा "!!!!!
अंत में बात वो ही आती है कि हम इस ब्रह्माण्ड की ही एक इकाई हैं। जो सोचेंगे वो ही पाएंगे। अभिपुष्टि ही आपको सफलता की ओर लेकर जाएगी कोई और नहीं। ख़ुशी, सफलता, शांति सब आपके भीतर हैं। आंखें बंद करें और पाएं। बस एक ही बात कहनी है कि हो सके तो अपनी प्राचीन संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें। आप जानोगे कि हमारे रस्मों रिवाजों में सूर्य, आकाश, जल, धरती और अग्नि को भगवान मान कर उनकी पूजा की जाती थी क्योंकि हमारा शरीर इन्हीं पांच तत्वों से बना है। हमारे हर व्रत और त्योहार मनाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क हैं और इन सब का उद्देश्य मनुष्य को और बेहतर बनाने का है तो कृपया सब भूलकर केवल और केवल खुद को एकाग्रचित्त करें और सबको साथ लेकर हंसी खुशी से आगे बढ़ें। जो भी करें दिल से करें और सबके कल्याण की कामना के साथ करें। व्रत, त्योहार जीवन की नीरसता को दूर करने का माध्यम भर हैं तो फिर उन्हें क्षेत्र या समय में ना बांध कर खुद उनके रस में बंध जाएं और सदैव याद रखें यह गीता उपदेश कि *"मन की गतिविधियां, होश, श्वास और भावनाओं के माध्यम से ब्रह्माण्ड की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है, और लगातार तुम्हें बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है "* 

Comments

  1. Thanks for very nice and knowledgeable message in the post

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Suffering, Suppression, Karma, Destiny????

"RADHA - KRISHNA & Our History